Thursday 8 July 2010

पेट के खातिर ढिबरा चुनते मासूम बच्चे


कोडरमा जिले के तिलैया बस्ती के निकट चरकी माइंस में जान हथेली पर रख कर मासूम बच्चे पेट के खातिर ढिबरा (माइका की रद्दी) चुनते हैं. यह एक दिन का काम नहीं है. बल्कि सूरज की किरण फूटते ही तिलैया बस्ती और आस-पास के ग्रामीण इलाकों के कई दर्जन बच्चे ढिबरा चुनने के लिए निकल पड़ते हैं. साथ ही कई बार तो इन्हें दस-दस फीट माइंस की खो में भी उतरना पड़ता है. दिन भर की कड़ी मशक्कत के बाद ये छोटी-छोटी टोकरियों में चार से पांच किलो ढिबरा चुन पाते हैं. जिसे बेचने पर मात्र इन्हें पांच से 10 रुपये तक मिलते हैं. हाथों में कलम खुरपी रहती है जिन मासूम हाथों में किताब, कलम और कॉपी होनी चाहिए, उन हाथों में खुरपी, हथौड़ी और टोकरी होती है. इन बच्चों को देखकर कहा जा सकता है कि घर-घर में शिक्षा का दीप जलाने का शिक्षा विभाग का दावा कोडरमा जिला में कितना कारगर सिद्ध हो रहा है. कई बार तो इन मासूम बच्चों के साथ दुर्घटनाएं भी हो जाती है तथा इन्हें जान भी गंवानी पड़ती है. इन बच्चों से जब पूछा गया तो कहते हैं कि उन्होंने कभी भी स्कूल का मुंह नहीं देखा है. साथ ही अभिभावक भी सब कुछ जानते हुए भी निगाहें फेर कर रखते हैं. उन्हें भी पता है कि ये मासूम बच्चे ढिबरा बेच कर जो कुछ लाते हैं, उनसे किसी प्रकार उनके परिवार का भरण-पोषण होता है.

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