Wednesday 29 December 2010

ठंड में बिरहोरों की स्थिति हुई दयनीय, नहीं ली किसी ने सुध


सरकार के लाख प्रयास के बावजूद जिले के जंगली क्षेत्र में बसे आदिम जनजाति बिरहोरों की स्थिति नहीं सुधरी है। सरकार द्वारा संचालित कल्याणकारी योजनाओं का लाभ इन्हें सही ढंग से नहीं मिल पा रहा है। इसका ज्यादातर लाभ बिचैलिये उठा रहे हैं। झुमरीतिलैया के सुदूरवर्ती क्षेत्र झरनाकुंड में इस भीषण ठंड में बिरहोरों की स्थिति काफी खराब है। यहां ठंड के कारण कई बिरहोर महिलाएं बीमार हैं। वहीं जयनगर प्रखंड के डंडाडीह के समीप जंगल की तराई में स्थायी रूप से बसे बिरहोर परिवार की स्थिति बदतर बनी हुई है। इन बिरहोरों के पास न तो रहने के लिए घर और न ही सोने के लिए बिस्तर। जमीन पर सोना और दूषित पानी पीना इनकी नियति बन गई है। फटेहाली जिंदगी जीने के लिए ये विवश हैं। कंपकंपाती ठंड से मंगरी बिरहोरिन बीमार है। मंगरी कहती है कि जाड़ा खत्म होय तो कंबलवा सरकार देतय तो का कर बै। भर ठंडा कंपकंपात हिय। वहीं अर्जुन बिरहोर, अशोक बिरहोर, रामेश्वर बिरहोर कहते हैं कि प्रशासन के पास कई बार वो घर के लिए चक्कर काट चुके हैं। उन्होंने कहा कि हम अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं परंतु स्कूल की व्यवस्था नहीं है। लोगों ने कहा कि एक माह से ऊपर होने के बाद भी जनवितरण प्रणाली दुकानदार शशिभूषण साव द्वारा अनाज नहीं दिया गया है जिससे भूखमरी के कगार पर हैं। यही हाल गड़ियाई स्थित 25 बिरहोर परिवारों की है। यहां भी ठंड से बिरहोर जनजाति कांप रहे हैं। लकड़ी और रस्सी बेचकर गुजर-बसर कर रहे हैं। डंडाडीह में बीडीओ ने मंगलवार की रात्रि 7 बजे पहुंचकर लोगों के बीच कंबल वितरण किया और बीमार बिरहोरिन मंगरी की स्थिति का जायजा लिया। मंगरी बिरहोरिन ने बताया कि अभी तक कोई चिकित्सक नहीं पहुंचे हैं। इधर, मरकच्चो में पिछले एक सप्ताह से पड़ रही ठिठुरन वाली ठंड से बरियारडीह स्थित बिरहोर कालोनी में दो बच्चों की मौत हो गई थी तथा दर्जन लोग बीमार हो गए थे।

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