Monday 11 December 2017

विशिष्ट पुरातात्विक और धार्मिक स्थल है घोरसीमर का देवघर धाम कोडरमा जिला में और मुख्यालय से 85 कि0 मी0 दूर सतगांवा प्रखंड अन्तर्गत घोरसीमर का देवघर धाम विशिष्ट पुरातात्विक सह धार्मिक स्थल है। प्राकृतिक नजारों से सराबोर देवघर धाम पहाड़, नदी एवं बहुतायत मात्रा में यत्र-तत्र बिखरे पुरातात्विक अवशेषों का चश्मदीद गवाह है। बलखाती सकरी नदी एवं सुसुप्त चट्टानों की जद में अवस्थित पहाड़ धार्मिक स्थली देवघर धाम के रूप में प्रसिद्धी पा रहा है। पहाड़ पर शिव पार्वती की प्रस्तर की मूर्तियां मंदिर में विराजमान है। यहां पर लगभग एक मीटर की गोलाईवाला चार फीट लंबा शिवलिंग है और समीप के बटेश्वर नामक स्थान पर लगभग इसी आकार का एक अन्य शिवलिंग है। भव्य शिवलिंग श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। पहाड़ के आसपास तलहट्टी में सैकडों की संख्या में प्रस्तर पर उत्कीर्ण या प्र्रस्तर की मूर्तियां जीर्ण-शीर्ण अवस्था में इधर-उधर बिखरे पड़े हैं। बड़ी-बड़ी शिलाओं पर बेहतरीन ढंग से नक्काशी कर बनाये गए विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां प्राचीन शिल्प कला के उत्कृष्ट नमूने की याद दिलाते हैं। यहां पर बिखरे पड़े अवशेषों में शिव के विभिन्न रूपों के अलावा पार्वती, विष्णु, यक्ष-यक्षिणी आदि हैं। अधिकांश मूर्तियों की पहचान अब तक नहीं की जा सकी है। एक किला का अवशेष भी यहां मिला है। संभवतः यह किसी शासक का रहा होगा। भूमि के अंदर भी सैकडों मूर्तियां दबी पड़ी हैं। यदा-कदा खेतों में काम करते वक्त किसानों को प्रस्तर की टूटी-फूटी मूर्तियां प्राप्त होती हैं। इनमें पांच-पांच फीट की शिलाओं पर नक्काशी की कवदंतियों के अनुसार रावण घोरसीमर नामक स्थान में विश्राम के पश्चात् भगवान शंकर को जब यहां से बलपूर्वक ले जाने लगा तो शंकर ने अपना विभिन्न रूप यहां छोड़ दिया और कालांतर में इसका नाम देवघर धाम पडा। यहां सैंकड़ो वर्ष से पूजा-अर्चना की परंपरा चली आ रही है। पूजा-अर्चना करने से मनोवंछित फल की प्राप्ति होती है, ऐसा ग्रामीणों का विश्वास है। यही कारण है कि पूजा-अर्चना, विवाह, मुंडन आदि कार्यों के लिए काफी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ प्रतिदिन उमड़ती है। शिवरात्रि में मेला का आयेाजन होता है, जिसमें दूर-दूर से लोग आते हैं। देवघर धाम पहुंचने के लिए प्रखंड मुख्यालय एवं गोविन्दपुर सड़क के मध्य से एक अन्य रास्ता तय करना पडता है। हाल ही में पुरातत्व विभाग द्वारा मन्दिर के निकट खुदायी भी करवायी गयी जिसमें छठी सदी के कई अवषेष मिले हैं। इस स्थल को न ही पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सका है, फिर भी यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि यह स्थल ऐतिहासिक महत्वों को अपने गर्भ में समेटे हुए है। संभवतः भूस्खलन की चपेट में आकर एक सभ्यता का अंत यहां हुआ है।